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लेखक – रुपेश गुप्ता

शराबबंदी को लेकर छत्तीसगढ़ में काफी आक्रामक आंदोलन चल रहे हैं। एक मोर्चे पर कांग्रेस और जनता कांग्रेस है तो दूसरे मोर्चे पर गैर राजनीतिक संगठनसरकार दबाव में भी है और उसके सामने चुनौती भी है। दबाव शराबबंदी का है और चुनौती है पहली बार शराब बेचने के धंधे में उतरी बीजेपी सरकार को दिखाना है कि शराब व्यापारियों के बिना भी वो शराब बेचकर राजस्व वसूल सकती है।

राजस्व सरकार की मजबूरी है। केंद्र से मिलने वाले पैसे मदों मे कम हुए हैं। व्यापार की रफ्तार कम है तो ख़ज़ाने पर बोझ भी ज़्यादा है ऐसे हालात में वो ज़्यादा से ज़्यादा कमाई शराब बेचकर करना चाहती है ताकि ख़ज़ाने पर अतिरिक्त बोझ न बढ़े।

ये सबको पता है कि शराब की खपत के मामले में छत्तीसगढ़ देश के अग्रणी राज्यों में शुमार है। और इससे टैक्स भी सरकार को काफी मिलता है। प्रदेश की वित्तीय स्थिति पहले जैसी मज़बूत नही है इसलिए सरकार ने स्वयं निगम बनाकर शराब बेचने का फैसला किया ताकि राजस्व में कमी न आये। दूसरी तरफ सरकार का ये फैसला उसकी आलोचना का सबब बन रहा है इसलिए उसे ऐसा रास्ता चुनना ही था जहां वो दबाव भी झेल सके और शराब से राजस्व अर्जित करने की चुनौती में सफल रह सके।

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सरकार ने इसके लिए बीच का रास्ता निकाला। ये रास्ता है आधी खाली गिलास को आधा भरा बताने का। सरकार के मुखिया रमन सिंह कह रहे हैं कि सरकार शराबबंदी की दिशा में बढ़ रही है लेकिन इस बयान का दूसरा पहलू है कि सरकार अभी पूर्ण शराबबंदी करके हज़ारो करोड़ रुपये के नुकसान का खतरा मोल नही ले रही है जिसकी मांग प्रदेश में ज़ोर शोर से हो रही है।

इसी रणनीति के तहत रमन सिंह का बयान है कि चरणबद्ध तरीके से शराबबंदी की जाएगी। ये बात कोई नई नही है रमन सिंह राज्य में कई दफा ये कह चुके हैं। पर आज ये बात उन्होंने राज्य के बाहर बिहार में कही तो राष्ट्रीय मीडिया के लिए बड़ी खबर बन गयी। सरकार को चलाने वाला तंत्र भी यही चाहता है कि शराब बेचने के बाद भी सरकार की इमेज ऐसी बने की वो शराबबंदी की दिशा में आगे बढ़ रही है।

सूत्रों की माने तो बीजेपी शराबबंदी को 2018 के विधानसभा चुनाव में ब्रम्हास्त्र की तरह इस्तेमाल करना चाहती है। सरकार की रणनीति है कि चुनाव से पहले शराबबंदी करके महिला वोटर को उसी तरह अपने साथ किया जाए जिस तरह 2013 के चुनाव से पहले राशनकार्ड महिला के नाम से बनवाकर अपने साथ किया था।

इससे सरकार को फायदा ही फायदा होगा। पहला फायदा होगा कि अचानक से एक माहौल सरकार के लिए बनेगा। दूसरा फायदा की चुनाव तक वो शराब बेचकर राजस्व के नुकसान से बची रहेगी। और तीसरा विपक्ष इस बात का माइलेज नही ले पायेगा।

लेकिन राजनीति लाभ और हानि पर केंद्रित इस रणनीति में सच यही है कि सरकार जितना बता रही है उससे ज़्यादा छिपा रही है। सरकार चरणबद्ध तरीके से शराब को बंद करने और पहले चरण में की बात कह रही है। पहले चरण में सरकार 3000 से कम आबादी वाले गांव में शराब नही बेचेगी। लेकिन जानकर बताते हैं कि 3000 स्ताके कम आबादी वाले गांव में शराब बेचना कोई फायदे का सौदा नही है और वो भी तब जब वो अकेले शराब बेचने वाली बॉडी है। सरकार ये बात पाने की स्थिति में नही है कि पहले चरण की समयवधि क्या होगी और दूसरे चरण में क्या कदम उठाएगी।

साफ है सरकार की नज़र हर जगह है। वो जान रही है कि सुबह शराब के खिलाफ जितनी भीड़ सड़क पर होती है रात को उतनी ही भीड़ शराब की दुकान के बाहर रहती है। इसलिए वो ऐसा तरीका अख्तयार किये हुए है कि कोई नाराज़ न हो। क्योंकि सरकार की असली नज़र 2018 पर टिकी है।